देवरिया में बाहर से आने वालों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है

देवरिया: घर से कुछ माह पहले वह लखनऊ गए, काम भी ठीक-ठाक चलने लगा। अचानक कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप ने उनके सपनों पर ग्रहण लगा दिया। पहले काम बंद हुआ और फिर रोडवेज तथा रेल सेवा। ऐसे में जेब में जब तक पैसा था तबतक तो जहां थे वहीं रुके रहे। जब पैसा खत्म हो गया तो घर के लिए पैदल चल दिए। लखनऊ से चले कुछ लोगों का कहना है कि रास्ते में बसें तो मिलीं लेकिन भाड़े का पैसा न होने की वजह से बस में नहीं बैठ सके।


यह पीड़ा है, बिहार प्रांत के सिवान जनपद के मैरवा व जीरादेई निवासी मनोज कुमार, शुभम कुमार, शिवाय, बबुंद्र की। लखनऊ से तीन दिन पहले वह अपने घर के लिए पैदल ही चल दिए। मंगलवार को सुबह दस बजे वह सोनूघाट चौराहे के समीप पहुंचे तो कुछ लोगों ने उन्हें भोजन कराया। मनोज ने बताया कि ऐसी स्थिति हमनें कभी नहीं देखी थी। सलेमपुर निवासी पवन, शत्रुघ्न, अखिलेश ने भी यही बात कही।


नहीं चले वाहन तो एंबुलेंस को बनाया भाड़ा गाड़ी


सोमवार की शाम से रोडवेज की बसें भी बंद हो गई। जिसके बाद पैदल आ रहे लोगों के सामने मुश्किल और बढ़ गई है। मंगलवार की सुबह सोंदा के समीप एक एंबुलेंस चालक ने पैदल जा रहे लोगों को देख रोक लिया और 100-100 रुपये लेने की बात कही। जिसके बाद लोग तैयार हो गए और एंबुलेंस में बैठ गए।


फंसे लोगों के लिए चलाई बस


मुम्बई, गुजरात समेत विभिन्न जगहों से आ रहे युवक गोरखपुर डिपो की बस से देवरिया आए। ओवरब्रिज के समीप लोगों को बस से उतार दिया गया। दोपहर बाद उन यात्रियों की समस्याओं को देखते हुए एक बस चलाई गई उन्हें बिहार बार्डर तक पहुंचाया गया।